Thursday, October 20, 2011

आईना


दोस्तों आज सुबह जब में अपने आईने के सामने खड़ा था मुझे में अजीब लग रहा था...तीन बार कंघा किया,,दो शर्ट बदले फिर भी वहि आलम,,अब मेने आईने के सामने से हटना ही बेहतर समझा..... आईने के इर्दगिर्द कुछ ख्याल आये जिन्हें शायरी के रूप में ढालने की कोशिश की  है;;;उनको आपके साथ साझा कर रहा हूँ.....

१- अगरचे आइनों की जुबां होती नहीं ताहिर,,
    मगर जब बोलने लगते हैं तो किसी की नहीं सुनते..
२- मैं चलते-चलते अक्सर इस गरज से आइना देख लेता हु,
     बहुत मुमकिन है आज मेरी मझसे मुलाकात हो जाये..
३-  मैं हमेशा उस वक्त पर अपना आइना तोड़ देता हूँ,
      जब में आईने के सामने अपने अन्दर झांक लेता हूँ..
४-  बहुत से राज खुल जाये ,अगर ताहिर,,
      आईने को आईने के सामने रख दिया जाये,,,,
५-   मैं उस वक्त अपने आईने से मुकम्मल दूरी बनाता हूँ ,,
        जब भी मेरे आईने की जुबां में सच बोलने की जुम्बिस देख लेता हूँ...