Saturday, January 30, 2010

शिकवे,शिकायतों से कुछ नहीं होने वाला

शिकवे,शिकायतों से कुछ नहीं होने वाला,
बदनसीबी से ये दौर इतनी आसानी से नहीं जाने वाला.
देखो हमारे दानिश्वरों की शान......
सोने के कप में चाय,काजू चादी की प्लेट में
लिखता है छोटू दो वक्त रोटी अपनी स्लेट में
अब चुप रहने से कुछ नहीं होने वाला
बदनसीबी से ये दौर इतनी आसानी से नहीं जाने वाला.
बहुत हो चुकी  संवेदना,
भाषणों  से कुछ नहीं होने वाला,
छोटू को असलियत में रोटी चाहिए,
रोटी शब्द से पेट नहीं भरने वाला.
मांगने से मिलती भीख है ,
हक़ कभी नहीं मिलने वाला.
छोड़ दो नादानियाँ लड़ो एकसाथ हक़ के लिए,
आपस में लड़ने से कुछ नहीं मिलनेवाला ...

ताहिर अली
09893311636

Monday, January 25, 2010

हिस्से

कई हिस्सों में बट गया आदमी.
एक आदमी अनेक हिस्सों में बटने के बाद भी जिन्दा है.
जिन्दा है हर हिस्से के लिए,
आदमी जब पैदा हुआ तभी उसके हिस्से थे,
किन्तु जैसे आदमी बढता गया वैसे उसके हिस्से भी बड़ते गए ,
हिस्सों में बटते बटते आदमी के हिस्से में कुछ नहीं बचा,
बचे सिर्फ हिस्से औ़र आदमी बचा इन हिस्सों को बचाने के लिए,
आदमी कभी माँ के हिस्से में आया,
कभी बाप,कभी भाई औ़र कभी बहिन के ,
इन हिस्सों में बटने के बाद जो हिस्से बचे ,
वो हिस्से आए पत्नी औ़र बच्चों के हिस्से .
इस तरह एक आदमी औ़र असंख्य हिस्से ...................

ताहिर अली
09893311636

म्रत्यु

म्रत्यु तुम्हारी भूख कब मिटेगी, कब बंद करोगी?
अपना वो तांडव जो तुम एक दूध मुहे बच्चे औ़र उसकी मां के साथ रचती हो?
क्या जीवन से बेदखल हुए बूढों  को लील कर तुम्हारी भूख नहीं मिटती. 
म्रत्यु क्या तुम भी भूख हड़ताल करती हो ?
औ़र जब तुम्हारी शर्त मान ली जाती है,
तब तुम बेहद विकराल रूप में अपनी भूख मिटाती हो  ,
कभी भूकंप,कभी बाढ़ तो कभी कोई बढ़ी दुर्घटना के रूप में.
म्रत्यु क्या सचमुच तुम जीन्दगी से बड़ी हो ?
ये मुझे तब तब लगता है जब जब तुम,
एक नन्हे मुन्ने को छीनती हो उसकी माँ के आँचल से,
म्रत्यु क्या तुम्हे जरा भी तरस नहीं आता?
अपनी माँ के स्तनों से चिपटे बच्चे को अलग करते हुए?
म्रत्यु खीझ आती है मुझे तुम औ़र तुम्हारे काम पर.
म्रत्यु किसी माँ के पास चन्द लम्हे गुजारो शायद तुम्हारी जिन्दगी में परिवर्तन आ जाये.

बेकाम

अब तुम बूढ़े हो गए हो हिरवा,
एकदम बूढ़े औ़र बेकाम,
बिलकुल तुम्हारे उस बैल की तरह ,
जिसे तुमने घांस डालना छोड़ दिया था,
 किन्तु वो तुम्हारे घर औ़र उसके खूंटे को छोड़कर कंही नहीं गया था,
बेदम पड़ा रहता था अपने गुवाड़े में ,
औ़र तुम हिरवा तुम भी बड़े निर्दयी हो गए थे उस समय,
उस बैल ने तुम्हारी बरसों सहायता की थी ,
औ़र असमर्थता की स्थिति में अकेला छोड़ दिया था,
उसे तुमने उसके हल पर,
फिर आज क्यों कोसते हो अपने बेटों को?
शायद उनके लिए अब तुम बेकाम हो,
पड़े रहो अपनी कोठरी में चुपचाप ,बेदम औ़र लाचार. 

ताहिर अली
09893311636

माँ

देखकर तुझको ये सांसे चलती हैं,
तेरी सूरत मेरी माँ मेरे खुदा से मिलती है
तेरी गोद में रखके सर जब मेरी माँ सो जाता हूँ,
तब में अपने आपको खुदा के सामने ही पता हूँ,
जब में तुझसे दूर होकर तनहा सफ़र पर जाता हूँ,
दिल मेरा रोता है माँ औ़र में काफिर हो जाता हूँ,
जब कभी बातों ही बातों में तेरा ज़िक्र आता है,
सच कहूँ तो उस घड़ी सजदे में से झुक जाता है,
बुत परस्ती का ना मुझको इल्म है ना शौक है,
दिल ने माना रब तुझे औ़र रब से ये बेख़ौफ़ है,
मिटा दूँ खुद को गर तेरी पेशानी पे बल पड़े,
हँसते हँसते लड़ जाऊ खुदा से गर तेरे लिए लड़ना पड़े.
                                                                              ताहिर अली
                                                                           09893311636


प्यारे गाँव

प्यारे गाँव बिछड़ कर तुझसे रोया सारी रात,
महानगर में नहीं पूछता कोई मेरी बात,
नहीं बरगद की छाया, नहीं हरी पगडण्डी,
स्वस्थ्य शरीरों की लगती है रोज यहाँ पर मंडी,
रोशनियाँ है पर चौराहे अन्धकार में डूबे,
राजपथ है भूल भुलैया गलियां बहुत घमंडी.
हर डोली में एक लाश है नंगी हर बारात,
प्यारे गाँव बिछड़ कर तुझसे रोया सारी रात................

Sunday, January 24, 2010

पागल कौन ?

ये कविता मध्य प्रदेश के रायसेन जिले मै  मैने एक पागल से प्रभावित होकर २००४ मै लिखी थी वो बांसुरी बहुत अच्छा बजाती थी औ़र साथ मै गाती भी थी एक दिन सुबह सुबह लगभग ४ औ़र ५ बजे के दरमियाँ वो बांसुरी बजा रही थी  औ़र साथ मै गा भी रही थी कोई लोकगीत था मुझे बहुत अच्छा लग रहा था मैने सुबह चाय की दूकान पर पूछा की ये सुबह सुबह कौन गाता  है तो उसने हँसते हुए कहा अरे वो पागल होगी मालती.  
कुछ ही देर मै मालती भी घूमते हुए उधर ही आ गई.चाय वाले ने कहा देखो भैया वो रही सुबह वाली गायिका यही मालती है.
मालती को कुछ लोग परेशान कर रहे थे और वो जोर जोरसे चिल्लाए  जा रही थी........................ 

उसकी आवाज़ में खुदा बोलता है
उसका हर शब्द उलझन खोलता है.
सड़कों  पर फिरता है मारा मारा,
सूने मकानों मै जो सदायें  दिया करता है,
वो जिसे चोंट पहुचाने पे सिर्फ आह भरता है,
वो सूनी सड़कों पर चिल्लाता है बेवजह,
वो शख्स मासूम,प्यारा,बेगुनाह.
वो लोग जिनके खयालों मै खलल पलता है,
वो लोग जिन्हें लोग सभ्य कहते  हैं .
मेरी नजर मै वो सब असभ्य होते हैं
वो जिसको चिड़ाते हैं कहकर पागल,
वो पागल जिसे लोग सनकी कहते हैं
वो अपनी सनक मै सनकता रहता है
वो घंटों उदास, खामोश खुदा से बात करता है
उसकी बातों मै निश्चय ही सच्चाई है 
वो सभ्य है मेरी नजर में मुकम्मल इन्सान भी वो है
वो जो अपने आप को इंसान कहकर इंसानियत का मजाक उड़ाते हैं
कितने इंसां हैं वो जो सड़क पर एक पागल को चिड़ाते हैं?
पागल मेरा मन अब किसे कहे ?
दो तरह के पागलों से सामना मेरा हो गया
 पर खतरा हैं वो सभ्य लोग जो,  
अपने आपको इंसान कहते हैं  
ऊंची हवेली, महलों,अटारियों में रहते हैं.
कैद करदो जंजीरों में ऐसे पागलों को, 
आज़ाद करदो मासूम,प्यारे चिल्लाते पागलों को.

ताहिर अली
09893311636

चन्द शेर

बदसूरतों की महफ़िल मै उसका क़त्ल हो गया,
वो जो शहर के आईने साफ़ किया करता था.

हम ना कहते थे खाओगे धोखा ,
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला.

ताल्लुकात अगर टूटने की जिद करले ,
जरा सा लहजा बदलने से टूट जाते हैं

नमाज़ से पहले ही उठ जाते  हैं दुआ मै हाथ,
डर है मुझसे पहले खुदा से तुम्हे कोई मांग ना ले. 

मजबूर भगवान

एक रात म्हारा सपणा मै भगवान आयो,
औ़र बोल्यो केरे ताहिर भोत दिन  से मंदिर नी आयो.
ते मैं बोल्यो भगवान वा बात यूँ हो गई की पिछला महिना म्हारी बात पक्की हो गई .
अब थारे तो मालूम की जगत मै छोरा ज्यादा नी छोरी कम है,
ईका लिए छोरी वाला होन के मारे नाक मै दम है.
थारा कारन म्हारी दो शादी टूटगी औ़र एक तो होते होते छुटगी.
वैसे छोरी वाला होन कु तो  भागो थो पर थारा केने से थोड़ो तेस मै आगो थो.
तू तो केरो थो की दुनिया मै छोरी न की कमी नी है,
म्हारे तो लागे थारी बातां मै  पेलो जैसो  दमी  नी है. 
थारे अपनी बड़ाई सुनने मै बड़ो मजो आये
ईका लिए जागता मै नी तो सपणा मै  चलियो आये.
औ़र आना का  ना जाने कई कई बहाना बनाये.
अब कई मुह से करूँ थारी बड़ाई थारा कारन मैने छोड़ दी पढाई,
तू केरो थो पढाई मै कोई दमी नी है औ़र नौकरी  तो कोई कम नी है.
अब थारा के फिकर करना की कई बात है,
थारा तो चार सिर ने आठ हाथ है.
फिर भी शादी बाद थारा दरबार में आउंगो  
औ़र हो सकियो तो ऊकू भी साथ लाउंगो .
भगवान बोल्यो ताहिर आजकल मै भी हूँ भोत  उदास,
अब तो फूटी कोड़ी नी  बची म्हारा पास,
थोड़ो भोत तुई इंतजाम करदे
औ़र म्हारा पे यो उपकार करदे .
मैं बोल्यो पर भगवन तू तो करे सबकी पूरी इच्छा,
फिर म्हारा से क्यों मांग रो भिक्षा  .
अरे ताहिर अब वो दिन गया जब खूब दिया वरदान
अब तो म्हारे जनता ने करली परेशान
झूठा आंसूं दिखा के म्हारे कंगाल कर गया
औ़र चढ़ावा  के नाम पे नरियल की कट्टी धर गया
अब तो कोई भी उदर नी आये
चढावो  तो ठीक झाड़ू भी नी लगाये
तुई थो जो रोज आतों थो ,
थारा आना से म्हारो खर्चो चल जातो थो
अब तो थारा आना भी छुट्गो
थारा नी आना से म्हारो दुनिया से जी रुठ्गो.
अब सोच रयो हूँ थोडा दिन औ़र रयो तो भूखो मर जाउंगो 
इका लिए कल ही देव लोक कूच कर जाउंगो. 
इका लिए कल ही देव लोक कूच कर जाउंगो. 

ताहिर अली 
09893311636 



 
  

यमलोक

एक रात मैं सपने मै मर गया औ़र सीधा यमराज के दर गया।
मैं बोला आदाब बज़ा लता हूँ वो बोले ठहर भेंस बांध कर आता हूँ।
पूछा कहाँ से आए हो ? अमेरिका से या जापान से तसरीफ लाए हो ?
मैं बोला ना मैं अमेरिकी ना जापानी मैं तो हूँ सीधा साधा हिन्दुस्तानी।
पूछा कुछ अच्छा काम किया है ?
मैं तुरंत बोला मज़हबी लड़ाई मै भाग लिया है।
यमराज बोले इसे अच्छा काम मानता है यही तो घोर पाप है क्या तू नहीं जानता है?
तुम लोगो से बड़ा परेशान हूँ औ़र ये सोचकर हैरान हूँ, तुम्हे किसने ये पट्टी पढाई?
क्या कभी की थी राम रहीम ने लड़ाई?
यमराज बोले मुझे जानता है? मैं हूँ किंग परलोक का औ़र तू मानव प्रथ्वी लोक का।
मैं बोला ठीक है अब देर ना लगाओ औ़र जल्दी मुझे स्वर्ग तक छोड़ आओ।
यमराज बोले तुमने आने मै करदी थोड़ी देरी अब तुम्हारी व्यवस्था करनी पड़ेगी टेम्परेरी।
मेने उत्सुक्तवस पूछा क्या स्वर्ग भरा है पूरा?
वे बोले दरअसल नरक तो फुल है महानरक है अधुरा,
दो चार साल मै बन जायेगा फिर तुम्हे वहां यमदूत बा इज्ज़त छोड़ आएगा।
तब तक वापस प्रथ्वी लोक चले जाओ वहां थोडा सही मगर पुण्य कमाओ।
औ़र सुन मानव सेवा सबसे बड़ा काम है इसी के जरिये स्वर्ग मै मिलता मक़ाम है।
अगर तू निस्वार्थ मानव सेवा करेगा तो निश्चित स्वर्ग मै तेरा भी घर रहेगा।
ये सब सुन जेसे ही मैं प्रथ्वी पर आया सूरज निकला पक्षियों ने चेह्चाहाया।
अब मैं मानव सेवा ही करूँगा क्योंकि मुझे पता है,
एक बार फिर मरूँगा, एक बार फिर मरूँगा।
ताहिर अली
09893311636

मंहगाई


मेरा एक दोस्त शहर मै गाँव से आया था
शायद शहर घुमने का विचार उसे लाया था
कह रहा था मुझसे शहर घुमने आया हूँ औ़र कुछ पैसा भी साथ लाया हूँ
मैने पूछा भई कितना पैसा है तुम्हारे पास
बोला ५०० मै बोला फिर छोड़ दो आस
अरे इतने तो घुमने मै ही लग जायेंगे बाकि खर्चे कहाँ जायेंगे?
वो बोला भई बाकि कौनसे खर्चे? मै बोला शायद तुमने सुने नहीं शहर के चर्चे?
रहने औ़र खाने का कहाँ से लोगे? वो तपाक से बोला तुम किस दिन काम आओगे?
मै बोला अगर तू सोचता है मै तुझे खिलाऊंगा तो यकीन मन सुबह ही गाँव चला जाऊंगा।
यहाँ तो पहले ही अपना हाथ तंग है औ़र शायद तू ये सोंच के दंग है,
की क्या गाँव की दोस्ती को यूँही भुलाउंगा औ़र तुझे चार दिन भी खिला नहीं पाउँगा
तो दोस्त यहाँ मंहगाई का राज है, badi मुस्किल से मिलता अनाज है।
मै तेरा खर्चा उठा नहीं पाउँगा तंग तो हूँ फटेहाल भी ho जाऊंगा।
अगर खूब चाहे तो सोने का इंतजाम कर दूंगा , रजाई तुझे दूंगा औ़र गद्दा खुद रख लूँगा।
वो बोला मै समझता हूँ तेरी मजबूरी , परन्तु रात हो गई है औ़र गाँव की है बहुत दूरी,
रात कट जाने दे सुबह चला जाऊंगा औ़र यकीं मान दोस्त फिर कभी नहीं आऊंगा, फिर कभी नहीं आऊंगा।
ताहिर अली
09893311636