Sunday, January 24, 2010

मंहगाई


मेरा एक दोस्त शहर मै गाँव से आया था
शायद शहर घुमने का विचार उसे लाया था
कह रहा था मुझसे शहर घुमने आया हूँ औ़र कुछ पैसा भी साथ लाया हूँ
मैने पूछा भई कितना पैसा है तुम्हारे पास
बोला ५०० मै बोला फिर छोड़ दो आस
अरे इतने तो घुमने मै ही लग जायेंगे बाकि खर्चे कहाँ जायेंगे?
वो बोला भई बाकि कौनसे खर्चे? मै बोला शायद तुमने सुने नहीं शहर के चर्चे?
रहने औ़र खाने का कहाँ से लोगे? वो तपाक से बोला तुम किस दिन काम आओगे?
मै बोला अगर तू सोचता है मै तुझे खिलाऊंगा तो यकीन मन सुबह ही गाँव चला जाऊंगा।
यहाँ तो पहले ही अपना हाथ तंग है औ़र शायद तू ये सोंच के दंग है,
की क्या गाँव की दोस्ती को यूँही भुलाउंगा औ़र तुझे चार दिन भी खिला नहीं पाउँगा
तो दोस्त यहाँ मंहगाई का राज है, badi मुस्किल से मिलता अनाज है।
मै तेरा खर्चा उठा नहीं पाउँगा तंग तो हूँ फटेहाल भी ho जाऊंगा।
अगर खूब चाहे तो सोने का इंतजाम कर दूंगा , रजाई तुझे दूंगा औ़र गद्दा खुद रख लूँगा।
वो बोला मै समझता हूँ तेरी मजबूरी , परन्तु रात हो गई है औ़र गाँव की है बहुत दूरी,
रात कट जाने दे सुबह चला जाऊंगा औ़र यकीं मान दोस्त फिर कभी नहीं आऊंगा, फिर कभी नहीं आऊंगा।
ताहिर अली
09893311636




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