प्यारे गाँव बिछड़ कर तुझसे रोया सारी रात,
महानगर में नहीं पूछता कोई मेरी बात,
नहीं बरगद की छाया, नहीं हरी पगडण्डी,
स्वस्थ्य शरीरों की लगती है रोज यहाँ पर मंडी,
रोशनियाँ है पर चौराहे अन्धकार में डूबे,
राजपथ है भूल भुलैया गलियां बहुत घमंडी.
हर डोली में एक लाश है नंगी हर बारात,
प्यारे गाँव बिछड़ कर तुझसे रोया सारी रात................
महानगर में नहीं पूछता कोई मेरी बात,
नहीं बरगद की छाया, नहीं हरी पगडण्डी,
स्वस्थ्य शरीरों की लगती है रोज यहाँ पर मंडी,
रोशनियाँ है पर चौराहे अन्धकार में डूबे,
राजपथ है भूल भुलैया गलियां बहुत घमंडी.
हर डोली में एक लाश है नंगी हर बारात,
प्यारे गाँव बिछड़ कर तुझसे रोया सारी रात................
No comments:
Post a Comment