Monday, January 25, 2010

म्रत्यु

म्रत्यु तुम्हारी भूख कब मिटेगी, कब बंद करोगी?
अपना वो तांडव जो तुम एक दूध मुहे बच्चे औ़र उसकी मां के साथ रचती हो?
क्या जीवन से बेदखल हुए बूढों  को लील कर तुम्हारी भूख नहीं मिटती. 
म्रत्यु क्या तुम भी भूख हड़ताल करती हो ?
औ़र जब तुम्हारी शर्त मान ली जाती है,
तब तुम बेहद विकराल रूप में अपनी भूख मिटाती हो  ,
कभी भूकंप,कभी बाढ़ तो कभी कोई बढ़ी दुर्घटना के रूप में.
म्रत्यु क्या सचमुच तुम जीन्दगी से बड़ी हो ?
ये मुझे तब तब लगता है जब जब तुम,
एक नन्हे मुन्ने को छीनती हो उसकी माँ के आँचल से,
म्रत्यु क्या तुम्हे जरा भी तरस नहीं आता?
अपनी माँ के स्तनों से चिपटे बच्चे को अलग करते हुए?
म्रत्यु खीझ आती है मुझे तुम औ़र तुम्हारे काम पर.
म्रत्यु किसी माँ के पास चन्द लम्हे गुजारो शायद तुम्हारी जिन्दगी में परिवर्तन आ जाये.

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