Sunday, January 24, 2010

चन्द शेर

बदसूरतों की महफ़िल मै उसका क़त्ल हो गया,
वो जो शहर के आईने साफ़ किया करता था.

हम ना कहते थे खाओगे धोखा ,
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला.

ताल्लुकात अगर टूटने की जिद करले ,
जरा सा लहजा बदलने से टूट जाते हैं

नमाज़ से पहले ही उठ जाते  हैं दुआ मै हाथ,
डर है मुझसे पहले खुदा से तुम्हे कोई मांग ना ले. 

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