Tuesday, July 11, 2017

शिक्षक

जैसे ही साइकिल कि घंटी मेरे कानों में पड़ती मैं अपने मन में कहता “लो गुरुजी आ गए।“ 
हर रोज नित्य समय पर, कंधे पर झोला लटकाए, पेशानी पर लिए पसीना, शिक्षक हमारे स्कूल आए। 
बस्ता खोलकर पढ़ने का स्वांग (बहाना) करते हुए मन में आत्मीयता से उनका स्वागत करता। 
आते ही पूछते “कैसे हो? मजे में तो हो?” ये सुनकर मन खुशी से भर जाता। 
जब कभी कहानियाँ सुनाते तो उनके और हमारे बीच कि सब दूरियाँ मिट जातीं। 
उनके साथ खेले खेल, आज भी चलचित्र कि भांति मन में चलते हैं। 
उनसे मन कि बात कहते हुए आँखों का भर आना, उनका प्यार से माथे पर हाथ रखना और आंसुओं का सिसकियों में बदल जाना। 
छोटी-छोटी बातों में हमारा हौसला बढ़ाना, दौड़ करके थाम लेना जब भी हुआ था लड़खड़ाना। 
उनकी प्यार भरी डांट और कभी अनायास पीठ पर पड़ी दुलार भरी चपत कि याद कभी-कभी मन को बेचैन कर देती है। 
मन करता है फिर वही वक्त लौट आए और मैं बच्चा बन अपने शिक्षक के साथ फिर से ज्ञान सृजन कि लंबी यात्रा का आगाज करूँ। 
बाकी तो सब वक्त कि चादर में ढक जाते हैं, सिर्फ शिक्षक ही हैं जो हमेशा याद आते हैं।

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