Monday, August 1, 2011

बचपन की करतूत


याद बचपन की जब आने लगी,                                                                                      
मेरी आँख मुरझाने लगी !
गाँव की गलियों में बजता था अपना डंका 
अपन थे राजा और वो अपनी लंका !
चटकाते थे अंटी और खेलते गिल्ली डंडा
निकलते तितली के शिकार पर और चुरा लेते चिड़िया का अंडा!
आम के पेड़ों में होती थी तोतों के बच्चों की खोज 
कभी सुनील तो कभी गोटू के घर हो जाता था अपना भोज !
कपड़ों की फिक्र न जूतों की चिंता 
न मन में बैर न कोई हीनता !
पन्नालाल को चिड़ाते थे बात ही बात में 
लड़ाई होती तो आ जाते औकात में !
बाप-माँ परेशान थे, मास्टरजी हैरान थे 
पढता नी लिखता,
दिनभर मैदान में दिखता!
चोरी करने में अपना नाम था
जामुन,भुट्टा,बैर चुराना आम था !
...............................................
अब साला बड़े हो गए,
अपने पैर पे खड़े हो गए !
छूट गया सुनील गोटू का भोज 
हेडक,  चिंता,टेंसन होती है रोज !
नौकरी , पैसा और सगाई 
बचपन अच्छा था रे भाई ..........................

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