Monday, August 1, 2011

मालती


ये कविता मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के गैरतगंज विकासखंड में  मैने एक पागल से प्रभावित होकर २००४ मै लिखी थी वो बांसुरी बहुत अच्छा बजाती थी औ़र साथ मै गाती भी थी एक दिन सुबह सुबह लगभग ४ औ़र ५ बजे के दरमियाँ वो बांसुरी बजा रही थी  औ़र साथ मै गा भी रही थी कोई लोकगीत था मुझे बहुत अच्छा लग रहा था मैने सुबह चाय की दूकान पर पूछा की ये सुबह सुबह कौन गाता  है तो उसने हँसते हुए कहा अरे वो पागल होगी मालती.  
कुछ ही देर मै मालती भी घूमते हुए उधर ही आ गई.चाय वाले ने कहा देखो भैया वो रही सुबह वाली गायिका यही मालती है.
मालती को कुछ लोग परेशान कर रहे थे और वो जोर जोर से चिल्ला कर उनके पीछे भाग रही थी........................ 

उसकी आवाज़ में खुदा बोलता है 
उसका हर शब्द उलझन खोलता है.
सड़कों  पर फिरता है मारा मारा,
सूने मकानों मै जो सदायें  दिया करता है,
वो जिसे चोंट पहुचाने पे सिर्फ आह भरता है,
वो सूनी सड़कों पर चिल्लाता है बेवजह,
वो शख्स मासूम,प्यारा,बेगुनाह.
वो लोग जिनके खयालों मै खलल पलता है, 
वो लोग जिन्हें लोग सभ्य कहते  हैं .
मेरी नजर मै वो सब असभ्य होते हैं 
वो जिसको चिड़ाते हैं कहकर पागल,
वो पागल जिसे लोग सनकी कहते हैं
वो अपनी सनक मै सनकता रहता है
वो घंटों उदास, खामोश खुदा से बात करता है
उसकी बातों मै निश्चय ही सच्चाई है 
वो सभ्य है मेरी नजर में मुकम्मल इन्सान भी वो है
वो जो अपने आप को इंसान कहकर इंसानियत का मजाक उड़ाते हैं 
कितने इंसां हैं वो जो सड़क पर एक पागल को चिड़ाते हैं?
पागल मेरा मन अब किसे कहे ? 
दो तरह के पागलों से सामना मेरा हो गया 
 पर खतरा हैं वो सभ्य लोग जो,  
अपने आपको इंसान कहते हैं  
ऊंची हवेली, महलों,अटारियों में रहते हैं.
कैद करदो जंजीरों में ऐसे पागलों को, 
आज़ाद करदो मासूम,प्यारे चिल्लाते पागलों को.

No comments:

Post a Comment